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गोड्डा जिले के लिए आकस्मिक फसल योजना
(Contingent crop plan of Godda district)
(2015 – 16)




सूखे की स्थिति में आकस्मिक कृषि योजना जिला - गोड्डा

मौसम वैज्ञानिकों से प्राप्त सूचना के आधार पर इस वर्ष सामान्य औसत वर्षापात की तुलना में कमी हाने की आशंका हे। साथ ही साथ प्रतिकुल मौनसून की संम्भावना की नजर में गोड्डा जिला हेतु आकस्मिक कृषि योजना निम्नवत प्रस्तावित है -


* जल संचय एवं किस्मों के चयनः

  • वर्षा के पानी का पूर्ण संचय करने का प्रयास (खेत की मेड़बंदी, खेत की गहरी जूताई, नमी के संचय के लिए भूमि के उपर भूसा, पूआल, धास फूस आदि का प्रयोग) करें जिससे फसल की जीवन रक्षक सिचाई की जा सके।
  • कम समय में पकने वाली एवं सूखा सहन करने वाली फसलों का चुनाव करें । फसलो का विवरण इस प्रकार है:

फसल उत्पादन

  • शंकर कंद की प्रभेद पूसा सफेद, राजेन्द्र शकरकंद, एस0-14, किसान, पूसा लाल, सी0ओ01 आदि के लतों की रोपाई आलू की तरह नाली बनाकर किसान भाई करें साथ ही साथ कतार से कतार की दूरी 50 से0मी0 एवं पौध से पौध की दूरी 30 से0 मीट0 रखें।
  • किसान भाई से कम वर्षवात की स्थिित में कुल्थी की प्रभेद (बिरसा कुल्थी -1 एवं मधु) 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से हल के पीछे नालियों मे बुआई करें ं
  • कृषकों से अनुरोध है की किसी भी दशा में अपनी जमीन को खाली ना छोड़े, मूॅंग की पूसा विशाल, के0-851, मालवीय ज्योति, मालवीय जनप्रिया, मालवीय जनचेतना, पंत मूॅंग-3,4,5, नरेन्द्र मूॅंग-1 आदि किसी एक प्रभेद की 20 किलोग्राम मात्रा को 40 ग्राम बेवेस्टिन दवा, 500 ग्राम राइजोबियम कल्चर से बीज उपचारित कर हल के पीछे नालियों में बुआई करें।
  • उरद की प्रभेद उत्तरा, पंत उरद-35 की 15 से 18 किलोग्राम मात्रा को मूॅंग के समान उपचारित कर जूलाई के अंत तक बुआई कर सकते हैं।
  • जिन जगहों पर नमी कम हो वहाॅं बीज को गोबर में मिला कर हल्का छाया में सुखा लें तत्पश्चात हल के पीछे बनी नालियों में बुआई सकते हैं।
  • तेल वाली फसल सरगुजा (प्रभेद बिरसा नाइजर -1) की 5 किलोग्राम मात्रा का बीज उपचार कर बुआई कर सकते हैं।
  • तोरिया एक कम अवधि में तैयार होने वाली तेल वाली फसल है, किसान भाई तोरिया की फसल लगाकर धान में हुई क्षति की पूर्ति कर सकते हैं। अतः किसान भाई सितम्बर के द्वितीय सप्ताह से अन्तिम सप्ताह तक प्रभेद आर0 ए0 टी0 -1, टी0 -9 एवं पी0 टी0-303 की 7 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से तोरिया की बुआई कर सकते हैं। यह फसल 60 दिन में पक कर तैयार होती है।
  • किसान भाई अनाज के लिए एवं चारे के लिए खाली पड़े अपने खेतों में बाजरा की खेती कर सकते हैं यह एक अत्यत सुखा सहन करने वाला फसल है इसकी खेती के लिए 4-5 कि0 ग्राम बीज प्रति हे0 (अन्न उत्पादन के लिए) एवं 12-15 कि0 ग्राम बीज चारे के लिए प्रयोग करें । इसकी उन्न्तशील प्रभेदों जैसे पूसा-23, पूसा 322, आई0सी0एम0बी0 155 आदि की बुआई कर सकते हैं।
  • सामन्य मानसून की तुलनना में दो सप्ताह के विलम्ब के उपरान्त निम्नवत तालिका में अकिंत फसल एवं प्रभेद के अनूरूप फसल एवं किस्म का चयन कर फसल की बुवाई की जा सकती है।
फसल प्रभेद बीज मात्रा किलो/ हे.) बीज की मात्रा मिश्रित फसल की दशा में (किलो / हे.) बुआई का समय सिचाई की क्रांतिक अवस्थाएं पकने का समय (दिन) उपज (क्विं़/ हे़)
धान बिरसा विकास धान 109/110, सदाबहार, अंजली, बिरसा धान 102,106, सहभागी, अभिषेक 100 (सीधी बुआई हेतु) 50 किलो जुलाई से अगस्त का प्रथम सप्ताह तक ब्यांत, गाभा बनते समय 80 से 110 30 से 35
संकर धान एराइज - 6129 -6444 15 - 15 जुलाई से 7 अगस्त ब्यांत, गाभा बनते समय 110 50 से 55
मक्का देवकी, सुवान, कम्पोजीट-1, बिरसा मकई 1 और 2, शक्तिमान-1, के़ एच-101, 30 आर 27, बूम, दत्ता 20 से 25 10 से 15 जुलाई से अगस्त पहली सिचाइ्र्र रोपाई के 30 दिन बाद। दूसरी सिचाई रोपाई के 60 से 65 दिन बाद। 85से 100 50से 55 60
अरहर उपास 120,प्रभात, आई सी पी एच 2671, निर्मल 2 18 से 20 8 से 10 15 जुलाई से 15 अगस्त पहली सिचाई - फूल आते समय दूसरी सिचाई -दाना बनते समय यदि उपलब्ध हो 140 12 से 15
उरद टी 9, पंत यू 19, बिरसा उरद 1, नरेन्द्र उरद 1, 15 से 20 8 से 10 15 जुलाई से 15 अगस्त पहली सिचाई - फूल आते समय दूसरी सिचाई -दाना बनते समय यदि उपलब्ध हो 75 से 80 15 से 20
मूंग पूसा विशाल, के 851, मालवीय ज्योति, मालवीय जागृति, मालवीय जनप्रिया, पंत मूंग 4 आदि 18 से 20 8 से 10 15 जुलाई से 15 अगस्त पहली सिचाई - फूल आते समय दूसरी सिचाई -दाना बनते समय 60 से 65 12 से 15
सोयाबीन बिरसा सोयाबीन 1, बिरसा सोयाबीन सफेद 2, जे एस 335, 75 से 80 35 से 40 10 जुलाई से 30 जुलाई पहली सिचाई - फूल आते समय दूसरी सिचाई -दाना बनते समय 120 से 150 30 से 35
मूंगफली बिरसा मूंगफली 1,2 एवं 3, बिरसा बोल्ड 75 से 80 35 से 40 10 जुलाई से 30 जुलाई फली बनते समय 125 से 130 20 से 30
तिल कांके सफेद, कृष्णा, गुजरात तिल 1,शेखर 5 से 6 2 से 3 10 जुलाई से अगस्त का प्रथम सप्ताह पहली सिचाई - 20 से 25 दिन दूसरी सिचाई -फूल आते एवं दाना बनते समय 90 से 100 4 से 7
ज्वार सी एस वी 1616 12 6 10 जुलाई से अगस्त का प्रथम सप्ताह फूल निकलते एवं फली बनते समय 110 से 115 35 से 40
फ्रेंचबीन बिरसा प्रिया, स्वर्ण लता 80 से 90 - जुलाई - अगस्त के प्रथम सप्ताह आवश्यकता के अनुसार 80 से 90 80 से 90
लोबिया पूसा फाल्गुनी, पूसा दोफसली , पूसा कोमल एवं नरेन्द्र लोबिया 75 से 80 35 से 40 15 जुलाई से 31 जुलाई फूल आते एवं दाना बनते समय 45 से 60 40 से 65

खरपतवार नियंत्रण:

  • किसान भाई खरपतवार नियंत्रण के लिए धान में रोपाई के तुरन्त बाद ब्यूटाक्लोर 1 लीटर प्रति एकड़ या प्रीटीलाक्लोर 750 एम0 एल0 प्रति एकड़ 2 किलोग्राम डी0 ए0 पी0 के साथ रोपाई के तुरन्त बाद व्यवहार करें तथा ध्यान रखें कि 24 घंटे तक कम से कम 2 से 3 ईंच पानी खेत में रहनी चाहिए। किसान को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हाथ, पैर आदि में घाव हो तो दवाई के प्रयोग से बचाना चाहिए।
  • धान के अतिरिक्त सब्जी, दलहन एवं तिलहन के बुआई के पहले 1 लीटर पेन्डीमेथलीन अथवा बेसालीन प्रति हेक्टेयर बुआई के पहले जुते हुए खेत में छिड़काव करें यदि किसी कारणवष दवाई का प्रयोग नहीं कर पाते हैं तो आवश्यकतानुसार खरपतवार निकालते रहें ।

उद्यान फसलें:

  • किसान भाई बैंगन, टमाटर, मिर्च, बन्धा गोभी, शिमला मिर्च एवं फूलगोभी आदि का बिचड़ा तैयार करने के लिए नर्सरी में बुआई तुरन्त कर दें।
  • जिन किसानों ने बिचड़ा तैयार कर लिया है वह रोपाई कर दें, रोपाई के बाद नमी के संरक्षण के लिए खेतों को पलवार (पुआल अथवा सूखे पत्ते आदि) से ढ़क दें । साथ ही साथ यह भी ध्यान रखें कि सिचाई एवं जल निकास का उचित प्रबंध हो ।
  • मिर्च, बैंगन, टमाटर, तोरई, बरबट्टी, कद्दू आदि के पौधे जल भराव होने पर तुरंत सूख जाते हैं अतः इन फसलों में जल निकास का प्रबंध अति आवष्यक है।
  • मूली, साग, भिण्डी, फेंच बीन, बोदी आदि फसलों की तुरन्त बोआई करें।
  • आम, अमरूद, अनार, शरीफा, कटहल आदि फलों के पौधों को जो किसान अभी तक नहीं लगा पायें हैं उनसे अनुरोध है कि तुरन्त खाद एवं उर्वरक का संस्तुत मात्रा का प्रयोग कर तैयार किये हुये गढे में रोपन करें। नये फलबाग एवं पुराने फलबाग में निर्धारित खाद एवं उर्वरक का प्रयोग पौधे के फैलाव के आधी दूरी पर 30 से0 मी0 चैड़ा एवं 30 से0 मी0 गहरा थाला बनाकर करें।
  • यदि संस्तुत मात्रा की जानकारी न हो तो कृषि विज्ञान केन्द्र के उद्यान विशेषज्ञ से तुरंत संपर्क करें।
  • जिले में फूलों की खेती की बहुत अधिक संभावनाऐं हैं क्योंकि आपके निकट कई धार्मिक स्थल है जैसे - बाबाधाम, बासुकीनाथधाम, योगिनीधाम एवं बाबा रत्नेष्वर धाम जहाॅं फूलों की बिक्री बहुत अधिक होती है। अतः किसान भाइयों से अनुरोध है कि गेंदा, बालसम, जिनिया आदि की बुआई कर पौध तैयार कर लें और तुरंत रोपाई करें।
  • किसान भाइयों/ विस्तार कमी की सुविधा हेतु कि फल, फूल एवं सब्जियों के उन्नत प्रभेद नीचे दिये जा रहें हैं जिले में उपलब्धता एवं रूचि के अनुरूप फसलवार प्रभेदों का चयन कर रोपाई करें।
फसल प्रभेद लगाने की दूरी
आम मल्लिका 8 * 8 m
आम्रपाली 5 * 5 m
लंगडा 10 * 10 m
अमरूद एल-49, इलाहाबादी सफेदा, ललित, अरका मृदुला 6 * 6 m
पपीता पूसा डवार्फ, कूर्ग हनीडयू , पूसा डेलिसियस 2 * 2 m
आॅंवला कृष्णा, कंचन, नीलम, चकैया, बनारसी 8 * 8 m
शरीफा बालानगर, ब्रिटिश गूनिया, साहेबगंज स्पेशल, चिरमोया 4 * 4 m
कटहल रूद्राक्षी, सिंगारोज, खाजा इलाहाबाद, हजारी, चंपा, गुलाबी 10* 10 m
सब्जी उत्पादन
बैंगन स्वर्ण श्री, स्वर्ण मणि, स्वर्ण श्यामली 60 * 60 cm
टमाटर स्वर्ण नवीन, स्वर्ण सम्पदा, स्वर्ण लालिमा 60 * 60 cm
गोभी पूसा दीपाली, पूसा अर्ली सिन्थेटिक, श्वेता ,अन्य संकर किस्में 45 * 45 cm
भिण्डी पंजाब पदमिनी, प्रभानी क्रांति, पूसा सावनी, वर्षा , उपहार, अर्का अनामिका 60 * 25 cm
मिर्च जी0 सी0-1, पूसा ज्वाला, पंत सी-1 एवं 2, पूसा सदाबहार, कल्याणपुर रेड, आंध्र ज्योति 50 * 40 cm
कद्दू पूसा मेघदूत, पूसा मंजरी, पूसा नवीन 2.5 * 2.5 m
कुम्हाड़ा अर्का चंदन, अर्का सूर्य मुखी, सी0 ओ0 लाल कुम्हाड़ा 2.5 * 2.5 m
तोरई झींगा, पूसा नसदार, कल्याणपुर धारीदार, कोंकण हरिता, सतपुतिया 2 * 2 m
फूल
गेंदा क्राउन आॅफ गोल्ड, जायन्ट डबल अफ्रीकन ओरेन्ज, जायन्ट डबल अफ्रीकन पीला, गोल्डेन जेम 30 * 30 cm
गूलाब सुपर स्टार, फस्ट प्राइज, सोेनिया, प्रियदर्षनी 90 * 90 cm
क्राइसेनथेमम सोनार बंागला, चन्द्रिमा 60 * 60 cm
टयूब रोज रजत रेखा, स्वर्ण रेखा 20 * 15 cm

चारा उत्पादन:


  • अगस्त माह में बोए जाने वाले चारा फसल जैसे ज्वार, मक्का, लोबिया, लूसर्न, नेपियर घास, गिन्नी घास, सोयाबीन, सुडान, ग्वार आदि की बोआई करें।
  • बकरियों - भेड़ो के लिए बड़े पौधे (कटहल, पाकर, बरगद, कटनीम, नीम ,सुबूल) आदि पत्तों का सेवन कराए।
  • ईख और मक्का के उत्सर्जित पदार्थो का सेवन बड़े पशुओं को करायें।
  • वर्षापात की प्रतिकूल स्थिित में धान फसल के आच्छादन में कमी के कारण पुआल उत्पादन भी प्रभावित होने की सम्भावना के मदेनजर अतः किसान भाइयों को सुझाव दिया जाता है कि बाजरा कि प्रभेद (राज बाजरा चरी, राज बाजरा चरी-2, जयन्त बाजरा, यू0 पी0 चरी -1 एवं 2, एम0 पी0 चरी-1) की 10 किलो ग्राम बीज की मात्रा प्रति एकड़ हल के पीछे नाली में बुआई करें।
  • ज्वार की प्रभेद सूडेक्स चेरी-1, 16 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ हल के पीछे बनी नालियों में बुआई करें । बुआई के 1 माह बाद एक सिचाई अवश्य करें क्योंकि ज्वार के पौधे एवं पत्तियों में एक जहरीला पदार्थ (हाइड्रोसाइनिकएसिड ) पाया जाता है जो कि भोजन को जहरीला बना देता है जिससे पशुओं की मौत तक हो सकती है अतः सिचाई के बाद ही खिलायें।
  • मक्का की प्रभेद अफ्रीकन टाॅल, विजय कम्पाॅजिट की बुआई करें बुआई किसी भी दशा में छिड़काव विधि से ना करें। बीज को हल के पीछे बनी नालियों में ही करें।
  • पौष्ैिटक चारा उत्पादन के लिए किसान भाई ग्वार की प्रभेद बुंदेल ग्वार 1 एवं2, एवं बुंदेल लोबिया 1 एवं 2 आदि की बुआई जूलाई के अंत तक कर सकते हैं ।
  • किसान भाइयों से अनुरोध है कि 2 मीटर लंबा 2 मीटर चैडा एवं 0.5 मीटर गहरा तीन गड्ढों का निर्माण करें, उसमें पाॅलिथीन की सीट बिछा दें तथा 0.5 किलोग्राम प्रति गड्ठा केचुआ खाद, 1़ किलोग्राम डीएपी 0.5 किलोग्राम पौटाश एवं 50 किलोग्राम मिट्टी को प्रति गड्ढों के हिसाब से भर दें एवं गड्ढों को भरने के बाद पानी से भर दें तथा एजोला का बुवाई करें। इस प्रकार आप प्रति दिन 1 किलो ग्राम एजोला प्रति पशु के हिसाब से खिलायें इससे दूध का उत्पादन 15-20 प्रतिशत तक बढता है साथ ही साथ हरे चारे की आपूर्ति होती है।
  • किसान भाई दिनानाथ धास (प्रभेद बुंदेल -1 एवं 2), गुनिया घास (पी0 जी0 जी0-9 एवे 14 ) की रोपाई खेत तैयार कर एवं खाद एवं उर्वरकों की संस्तुत मात्रा का प्रयोग कर तुरन्त करें जिससे आपके पशुओं को प्रतिकूल स्थिित में चारा मिल सकें।

पशु स्वास्थ्य:


  • जिन किसान भाइयों ने अभी तक खुर पका मुॅंह पका बीमारी का टीका नहीं लगवाया है उनको सुझाव दिया जाता है कि अपने पशुओं में टीकाकरण तुरंत करवा लें । यदि किसी कारणवश बीमारी लग गयी है तो लूगल आयोडिन 20 एम0 एल0 का लेप खुर एवं मुॅह में प्रयोग करें, टेट्रासइक्लिन 20 एम0 एल, एम्पीसीलीन 1 से 2 ग्राम दवा लगातार 2 से 5 दिन तक प्रति पशु की दर से प्रयोग करें। अगर उर्पयुक्त दवायें उपलब्ध न हो तब देशी घी 10 ग्राम प्रति पशु की दर से जीभ पर चार बार लगायें एवं काॅपर सल्फेट 1 प्रतिशत घोल, लाइजोल 1 प्रतिशत या फिनाइल खुर के घाव पर लेप करें। पशुओं को कीचड. पर न रखें उस पर पेट्रोल, डीजल, मोबील आदि ज्वलनशील पदार्थो का प्रयोग ना करे।
  • कंठा बीमारी का भी प्रकोप हो सकता है। अतः जिन किसान भाईयों ने कंठा बीमारी से बचाव का टीका नहीं लगाया है उनसे सुझाव है कि बीमारी के बचाव हेतु नजदीकी पशु चिकित्सक से तुरन्त संपर्क करें। इसके इलाज के आॅक्सीटेट्रासाइक्लिन या टेरामाइसीन 60 एम0 एल0 (बड़े पशुओ के लिए ) बेटनीसोल इंजेक्सन 6 एम0 एल0 इन्टराभेनस, यूनीमाइसिन 30 एम0 एल0 इन्टराभेनस एवं भेटलाॅग 5 एम0 एल0 इन्टरामसकूलर चार दिन तक लगातार डाक्टर की सलाह से प्रयोग करें।
  • बरसाती घास खाने से पशुओं में डायरिया की शिकायत हो सकती है इस बीमारी में गोबर पतला होता है तथा पशु चारा एवं दाना आदि छोड़ देता है इस दशा मे किसान पचो प्लस टेबलेट की एक से दो गोली खिलायें साथ ही साथ नजदीकी पशु चिकित्सक से तुरन्त संपर्क करें। फूराजोलीडाॅन 10 एम0 जी0 प्रति किलो वनज की दर से पशुओं को तीन दिन तक खिलायें।
  • जैसा कि सुअर में स्वाइन फीवर की बीमारी बहुतायत में पायी जाती है अतः कृषक तुरन्त अपने सुअर को बचाने के लिए स्वाइन फीवर का टीका लगवायें एवं नजदीकी पशु चिकित्सक से तुरन्त संपर्क करें।
  • सुकर पालक टी0 एंड़ डी0 नस्ल के सूकरों का पालन करें जो अच्छी बढवार के साथ कम बीमारी से ग्रसित होने वाला सूकर का उन्नत नस्ल है।
  • बकरी पालक ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियों का पालन पोषण करें। यह किस्म ये इस क्षेत्र के लिए डन्नत माॅंस उत्पादक बकरी का नस्ल है।
  • मुर्गी उत्पादन के लिए मुर्गीपालक पुर्ण रूपेण सफाई की हुई प्रक्षेत्र तैयार कर मुर्गीपालन प्रारम्भ कर सकते हैंें।
  • वर्षा ऋतु में पशुओं में गलाघोटु, लंगड़ी जैसे छूत के रोग अधिक फैलते हैं। इन रोगों से बचाव हेतु प्रतिरोधक टीके ं लगवायंे ।
  • बरसात के मौसम में पशु के घरों को सूखा रखें एवं मक्खी रहित करने के लिए फिनाईल का छिड़काव करते रहें। इससे चर्मरोग का प्रभाव कम होगा।
  • पशुओं में खनिज मिश्रण 50ग्राम से 60 ग्राम प्रतिदिन दें ताकि पशु की दुग्ध उत्पादन और समुचित स्वास्थय बना पशुओं को जुएँ व अन्य वाहय परजीवी ़से बचाव के लिए समय-समय पर पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार नियमित अन्तराल पर दवा का प्रयोग करते रहें।
  • पशुओं को तालाव का गन्दा पानी न पिलावें।
  • चारे की फसल से अधिक उत्पादन लेने के लिए उचित समय पर सिंचाई करें।
  • मक्का बिजाई से 45-55 दिन और ज्वार 50 से 60 दिन बाद पशुओं को खिलाने पर भरपुर मात्रा में पौष्टिक तत्व मिलते हैं।
  • मक्का एवं ज्वार को सिंचाई के बिना ना खिलाए क्यों की इसमें एक विषैला पदार्थ पाया जाता है जिसे धुरीन कहते हैं जो पशु के स्वास्थ्य में बुरा प्रभाव डालता है। अतः 50-60 दिन बाद ही खिलाए।
  • अक्टूबर माह में हरे चारे की कमी को पुरा करने के लिए अगस्त माह के तीसरे व चैथे पखवाड़ें में ज्वार व मक्का की बिजाई करें।

पादप सुरक्षा


धान:
  • धान की फसल में तना वेधक, पत्ती लपेटक तथा हिस्पा कीट के प्रबंधन के लिए ट्राइजोफाॅस (40 ई0 सी0), क्विनाॅलफाॅस(25 ई0 सी0), प्रोफेनोफाॅस (50 ई0 सी0) या साइपरमेथरीन (25 ई0 सी0) नामक कीटनाशकों का छिड़काव करें। इसके अलावे नीम आधारित कीट नाशी (नीम के बीज का 5 प्रतिशत घोल ) का भी प्रयोग कर सकते हैं।
  • धान की फसल में झुलसा नमक बीमारी होने पर कार्वेन्डाजिम (50 डब्ल्यू0 पी0) या हेक्साकोनाजाॅल (5 ई0 सी0) नामक रसायन का छिड़काव करें।
  • भूरा फूदका तथा हरा फूदका का प्रकोप होने पर इमीडाक्लोप्रिड (17.8 एस0 एल0) या डाइमेथोएट (30 ई0 सी0) का छिड़काव करें ।
  • गंधी कीट का आक्रमण होने पर मिथाइल पेराथियाॅन 2 प्रतिशत धूल का छिड़काव 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।

ज्वार / बाजरा:
  • ज्वार की फसल को चूसने वाले कीटों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए इमीडाक्लोरप्रिड (70 डब्ल्यू0 एस0) से बीज उपचार करना चाहिए।
  • इन फसलों को तना मक्खी, तना वेधक तथा अन्य कीटों से बचाने के लिए कार्टप हाइड्रोक्लोराइड (50 डब्ल्यू0 पी0), साइपरमेथरीन (25 ई0 सी0) या ट्राइजोफाॅस (40 ई0 सी0) में से किसी एक का छिड़काव क्षति की गंभीरता को देखते हुए करें।

मक्का:
  • मक्का की फसल को तना वेधक नामक कीट से होने वाली क्षति को कम करने के लिए कार्टप हाइड्रोक्लोराइड (4 जी0) या कार्बोफ्यूराॅन (3 जी0) नामक दानेदार कीटनाषी की 15 से 20 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।

मूंग / उरद:
  • इन फसलों में लगने वाली पीली चित्ती रोग (येलो वेन मोजेक वायरस) से बचने के लिए प्रतिरोधी किस्म का चयन करें। मूंग की पूसा विशाल, के0-851, मालवीय ज्योति आदि में से किसी एक का चयन कर सकते है। इसी तरह उरद की पंत यू0-19, बिरसा उरद-1 प्रजाति प्रतिरोधी पायी गयी है।
  • बीमारी का लक्षण दिखाई देेने पर इमीडाक्लोप्रिड (17.8 एस0 एल0) का छिड़काव कर सकते हैं।

तिल:
  • पत्ती लपेटक तथा फली बेधक, गाॅल मक्खी तथा माॅथ का आक्रमण होने पर क्षति की गंभीरता को देखने हुए प्रोफेनोफाॅस (50 ई0 सी0), साइपरमेथरीन (25 ई0 सी0) या ट्राइजोफाॅस (40 ई0 सी0) में से किसी एक का छिड़काव कर सकते हैं।

अरहर:
  • अरहर की फसल में फूल बनने के बाद कीटों की संख्या को देखते हुए विभिन्न प्रकार के फल बेधक कीटों के नियंत्रण के लिए पहला छिड़काव नीम के बीज से तैयार कीटनाशी (5 प्रतिशत) से करें। पुनः 10 दिन बाद क्षति की गंभीरता को देखते हुए दूसरा छिड़काव बी0 टी0 (डेल्फिन, हाॅल्ट आदि) से करें तथा आवश्यकतानुसार तीसरा छिड़काव डाइमेथोएट (30 ई0 सी0) से कर सकते हैं ।

बैगन:
  • जीवाणु झुलसा रोग से बचने के लिए प्रतिरोधी किस्म जैसे - स्वर्ण श्री, स्वर्ण मणी, स्वर्ण श्यामली में से किसी एक का प्रयोग करे।
  • बैंगन की फसल को झुलसा रोग से बचाने के लिए बीज का उपचार ट्राइकोडर्मा (4 ग्राम प्रति किलो बीज) या कार्वेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति किलो बीज ) नामक रसायन से कर सकते हैं ।
  • अंतिम जुताई के समय खेत में गोबर की सड़ी खाद (50 किलो) में 1 किलो ट्राइकोडर्मा मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव कर दें। छिड़काव करने के समय खेत में हल्की नमी रहनी चाहिए।
  • बैंगन की फसल को तना एवं फल बेधक कीट के द्वारा होने वाली क्षति को कम करने के लिए नीम आधारित कीट नाषी, कार्टप हाइड्रोक्लोराइड (4 जी0, 3 ग्राम प्रति पौधा) या कार्बोफ्यूराॅन (3 जी0, 3 ग्राम प्रति पौधा) का प्रयोग करें।
  • क्षति होने की दशा में प्रोफेनोफाॅस (50 ई0 सी0), साइपरमेथरीन (25 ई0 सी0) या ट्राइजोफाॅस (40 ई0 सी0) में से किसी एक का भी छिड़काव कर सकते हैं।

टमाटर:
  • जीवाणु मुरझा रोग से बचने के लिए प्रतिरोधी किस्म जैसे - स्वर्ण नवीन, स्वर्ण सम्पदा, स्वर्ण लालिमा में से किसी एक का प्रयोग करे।
  • टमाटर की फसल को मुरझा रोग से बचाने के लिए बीज का उपचार ट्राइकोडर्मा (4 ग्राम प्रति किलो बीज) या कार्वेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति किलो बीज ) नामक रसायन का प्रयोग कर सकते हैं ।
  • अंतिम जुताई के समय खेत में गोबर की सड़ी खाद (50 किलो) में 1 किलो ट्राइकोडर्मा मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव कर दें। छिड़काव करने के समय खेत में हल्की नमी रहनी चाहिए।
  • टमाटर की फसल को फलबेधक कीट से बचाने के लिए बी0 टी0, नीम आधारित कीट नाशी या एन0 पी0 वी0 का प्रयोग करे।
  • टमाटर के साथ गेंदा लगाना भी इस कीट के नियंत्रण के लिए लाभदायक पाया गया है।

बीज उत्पादनः


सूखे की स्थिति में होने वाले महत्वपूर्ण फसलों का बीज उत्पादन तकनीक -

अरहर:
  • बुआई का समय जुन से अगस्त तक ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: आई0 सी0 पी0 एल0 -151 (110 से 115 दिन), आई0 सी0 पी0 एल0 -332 (170 से 175 दिन)ए आई0 सी0 पी0 एल0 -87 (130 से 135 दिन) उर्पयुक्त किस्म स्ट्रलिटी मोजेक प्रतिरोधी एवं उकठा रोग प्रतिरोधी है।
  • बीज दर 50 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 25 से0 मी0, पौधा से पौधा 15 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 100 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 50 मी0
  • उपज क्षमता 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

फ्रेंच बीन:
  • बुआई का समय अगस्त से सितम्बर ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: बिरसा प्रिया, स्वर्ण लता ।
  • बीज दर 25 से 30 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 75 से0 मी0, पौधा से पौधा 15 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 10 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 5 मी0
  • उपज क्षमता 12 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

कुल्थी :
  • बुआई का समय अगस्त ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: बिरसा कुल्थी-1 (100 से 105 दिन)।
  • बीज दर 20 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 30 से0 मी0, पौधा से पौधा 10 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 10 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 5 मी0
  • उपज क्षमता 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

तोरिया :
  • बुआई का समय 10 सितम्बर से 20 अक्टूबर ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: आर0 ए0 यू0 टी0 एस0 -17 एवं टी0-9, पी0 टी0 303।
  • बीज दर 5 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 30 से0 मी0, पौधा से पौधा 10 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 100 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 50 मी0
  • उपज क्षमता 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

नाइजर :
  • बुआई का समय जूलाई से अगस्त ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: बिरसा नाइजर -1।
  • बीज दर 6 से 8 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 30 से0 मी0, पौधा से पौधा 15 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 400 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 200 मी0
  • उपज क्षमता 3 से 4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

तिल:
  • बुआई का समय मध्य अक्टूबर ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: बिरसा तिल एवं कांके सफेद ।
  • बीज दर 2.5 से 5.5 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 30 से 45 से0 मी0, पौधा से पौधा 15 से 22 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 100 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 50 मी0
  • उपज क्षमता 2 से 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

अंडी:
  • बुआई का समय मध्य अक्टूबर ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: अरूणा, सुभाग्या, ई0 बी0 16ए।
  • बीज दर 11 से 18 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 90 से0 मी0, पौधा से पौधा 45 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 300 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 150 मी0
  • उपज क्षमता 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

सूर्य मुखी:
  • बुआई का समय जून-जूलाई ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: मार्डन ।
  • बीज दर 8 से 10 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 60 से0 मी0, पौधा से पौधा 20 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 400 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 200 मी0
  • उपज क्षमता 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

सोयाबीन:
  • बुआई का समय जूलाई से अगस्त।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: बिरसा सोयाबीन-1, जे0 एस0 -8021 ।
  • बीज दर 65 से 70 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 45 से 60 से0 मी0, पौधा से पौधा 4 से 5 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 3 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 3 मी0
  • उपज क्षमता 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

तिसी:
  • बुआई का समय अक्टूबर से नवम्बर।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: टी0 -397 ।
  • बीज दर 30 से 35 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 22 से 30 से0 मी0, पौधा से पौधा 5 से 6 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 50 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 25 मी0
  • उपज क्षमता 10 से 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

सरसों:
  • बुआई का समय से सितम्बर अक्टूबर ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: महक, बरूणा, शिवाणी
  • बीज दर 5 से 8 किलो प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि - कतार से कतार 30 से0 मी0, पौधा से पौधा 7 से 10 से0 मी0।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 100 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 50 मी0
  • उपज क्षमता 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

फूलगोभी:
  • बुआई का समय अगस्त का अंतिम सप्ताह ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: पूसा दिपाली, पूसा अर्ली सिन्थेटिक, पूसा स्नोबाॅल-16।
  • बीज दर 375 से 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि नर्सरी बेड की - 2 से 2.5 मी0 लंबाई एवं 1 से 1.25 मी0 चैडाई ।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 1600 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 1000 मी0
  • उपज क्षमता 250 से 400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।

टमाटर:
  • बुआई का समय जूलाई से अगस्त ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: स्वर्ण नवीन, स्वर्ण सम्पदा, स्वर्ण लालिमा ।
  • बीज दर 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि नर्सरी बेड की - 2 से 2.5 मी0 लंबाई एवं 1 से 1.25 मी0 चैडाई ।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 50 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 25 मी0
  • उपज क्षमता 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।

बैंगन:
  • बुआई का समय जूलाई से अगस्त ।
  • कम समय में होने वाला प्रभेद: स्वर्ण श्री, स्वर्ण मणी, स्वर्ण ष्यामली ।
  • बीज दर 375 से 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
  • बुआई विधि नर्सरी बेड की - 2 से 2.5 मी0 लंबाई एवं 1 से 1.25 मी0 चैडाई ।
  • पृथ्ककरण दूरी - आधार बीज उत्पादन 200 मी0 प्रमाणित बीज उत्पादन 100 मी0
  • उपज क्षमता 100 से 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
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